मिलिट्री नर्सिंग सर्विस को प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीद

मिलिट्री नर्सिंग सर्विस को प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीद

सतीश लखेड़ा

कोरोना महामारी के समय नर्सेज की उपयोगिता पूरी दुनिया समझ रही है। इस अदृश्य शत्रु से मजबूती से वे  प्रथम पंक्ति में लड़ती हुई दिखाई दे रही हैं। इस महामारी में उन्होंने समर्पण की पराकाष्ठा तक काम करके अपने पेशे की महत्ता को समझाया है। पूरी दुनिया मे अनेक नर्सेज अपनी सेवा देते हुए शहीद भी हो चुकी हैं।

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इस लड़ाई में मिलिट्री नर्सिंग सर्विस भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मिलिट्री नर्सिंग सर्विस भारतीय सेना की महत्वपूर्ण इकाई है, जो 1888 में भारतीय सेना का अंग बनी। तब सेना की किसी भी कोर में कोई महिला अफसर नहीं थी। प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) तथा द्वितीय विश्व युद्ध  (1939-1945) के दौरान सेना की 350 ब्रिटिश व भारतीय नर्सिंग अधिकारी या तो शहीद हुई या उन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया। 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एसएस कौला नाम के नेवी शिप, जिसे जापान द्वारा बमबारी से नष्ट कर दिया गया, में भी अनेक नर्सिंग ऑफिसर शहीद हुई। 

27 अगस्त 1976 को मिलिट्री नर्सिंग सेवा की अधिकारी एलिस रामा भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी बनी जिन्हें टू स्टार व फ्लैग रैंक का स्टेटस दिया गया। भारतीय सेना में किसी महिला को पुरुषों के बराबर सम्मान दिए जाने पर पूरे विश्व में भारतीय सेना के इस कदम की प्रशंसा हुई थी।

सेना में मिलिट्री नर्सिंग सर्विस यानी एमएनएस अधिकारियों की संख्या 5000 से अधिक है। पिछले दशकों में निरंतर इनके मान सम्मान के साथ सिलसिलेवार भेदभाव शुरू हुआ। जितना एमएनएस का अतीत गौरवशाली है, उतना ही इनका वर्तमान तनाव भरा है। सेना के मेडिकल मुख्यालय द्वारा धीरे-धीरे इनके सम्मान में कटौती जारी है।

आज कोरोना से लड़ते हुए पूरी दुनिया डॉक्टरों और विशेषकर नर्सों को जिस तत्परता से काम करते हुए देख रही है, अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की सीमाओं से लगे अस्पतालों में सैनिकों के महत्वपूर्ण जीवन को बचाने के लिए किस शिद्दत से एमएनएस काम करती हैं। सेना के कोविड-19 हॉस्पिटल आज इनकी बदौलत मजबूती से अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

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पुरुष प्रधान मानसिकता द्वारा पिछले कुछ वर्षों में निरंतर इन महिला अफसरों के दर्जे को कम किया गया। धीरे धीरे इन्हैं मेडिकल सेवा की विशिष्ट कमेटियों से हटाया गया। फिर अनेक सेंटर्स के आर्मी ऑफिसर्स क्लब की सदस्यता से वंचित किया जाने लगा। हास्यास्पद है कि आर्मी मेडिकल कोर के अधिकारी एमएनएस की एसीआर लिखते हैं जबकि स्वयं नर्सिंग सर्विस का अपना सक्षम मुख्यालय है।

पिछले वर्षों में एमएनएस के सम्मान और स्तर को लेकर अनेक अपमानजनक फैसले हुए जिस पर सेना मुख्यालय की की चुप्पी रही या मूक सहमति। इन्हीं कारणों से एमएनएस का इस सेवा से मोहभंग हो रहा है।

इन महिला एमएनएस अधिकारियों की अनेक बार वर्दी के रंग भी बदले जा चुके हैं। उन्हें जानबूझकर सेना की हरी ( ऑलिव ग्रीन ) वर्दी से वंचित रखा गया है। उन्हें सेना के वेतन का पे-बैंड 4 भी नहीं दिया गया है। जिस कारण वह सेना के पुरुष अधिकारियों से समान रैंक की होते हुए भी कम वेतन पाती हैं और उनकी पदोन्नति भी पुरुष अधिकारियों से देर में होती है।

मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की ये महिला अधिकारी युद्ध क्षेत्रों ( फील्ड पोस्टिंग ) में तैनात रहती हैं, विदेशों में तैनात शांति सेना ( पीस मिशन जैसे कांगो, सोमालिया, लेबनान, सूडान, इथोपिया आदि ) की प्रमुख अंग रहती हैं और वर्तमान में भी तैनात है। यहां तक कि हाल ही में वुहान और ईरान से कोरोना मरीज लाने के लिए सेना ने इनका प्रथम पंक्ति में उपयोग किया।

अविश्वसनीय सा लगता है कि मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की चीफ जिनका पद मेजर जनरल रैंक का होता है। 2002 की घटना है जब मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की चीफ मेजर जनरल सिकदर अपने ऑफिशियल मुंबई दौरे पर थी उस दौरान सेना के मेडिकल सर्विस मुख्यालय के इशारे पर सार्वजनिक रूप से उनके सरकारी वाहन से फ्लैग और स्टार हटा कर उन्हैं अपमानित किया। यह भारत की  सेना की विशिष्ट सेवा की सर्वोच्च अधिकारी और एक महिला का सार्वजनिक अपमान था। सेना मुख्यालय ने ना इस मामले की जांच की और न माफी मांगी बल्कि एमएनएस चीफ के मेजर जनरल रैंक को सेना के अन्य मेजर जनरल  रैंक जैसे सम्मान और स्तर से वंचित कर दिया।

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सेना की ये नर्सिंग अधिकारी  कम होते सम्मान और पुरुष वर्चस्व के षड्यंत्रों के कारण लगातार अपमानित हो रही है। देश की पहली पूर्णकालिक रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल में गंभीरता से इस बारे में गम्भीर विचार प्रारंभ हुआ था जो कि उनके मंत्रालय बदलने के बाद पुनः अधर में लटक गया। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और नारी सम्मान  पर गम्भीर विमर्श जारी है। उनके कार्यकाल में महिलाओं के सम्मान के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है। उम्मीद है सेना की रिटायर्ड एमएनएस अधिकारियों द्वारा सेवारत और सेवा में आने वाली अधिकारियों के सम्मान की लड़ी जा रही लड़ाई मुकाम तक पहुंचेगी यह सरकार खुद संज्ञान लेकर उन्हें बराबरी का दर्जा दिलायेगी।

(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)

 

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